Kargil Vijay Diwas 2023: कारगिल युद्ध में अपने अभूतपूर्व योगदान से परम वीर चक्र जीतने वाले नायकों की लिस्ट

Kargli War Heroes List Who Received Paramvir Chakra: परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान है। ये सम्मान उन वीर सेना के अफसरों को दिया जाता है जिनका योगदान देश कभी भुला नहीं सकता है। दुश्मन की उपस्थिति में सर्वोच्च वीरता का प्रदर्शन करने और बहादुर से दुश्मनों का सामना करने वाले सैनिकों को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है। परम वीर चक्र की 26 जनवरी 1950 को स्थापित किया गया था। तब से आज तक में केवल 21 भारतीय सैनिक ही हैं जिन्हें इस सम्मान से नवाजा गया है। आइए आपको कारगिल के उन वीर योद्धाओं के बारे में बताएं...

Kargil Vijay Diwas 2023: कारगिल युद्ध में अपने अभूतपूर्व योगदान से परम वीर चक्र जीतने वाले नायक

कारगिल विजय दिवस कारगिल युद्ध में अपनी जान की परवाह करें बिना देश के लिए लड़ने वाले सैनिकों की याद में मनाया जाता है। ये दिवस हर वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध 1999 में हुई थी। कारगिल का ये युद्ध लगभग 2 महीने तक चला था। इस युद्ध को भारतीय सैनिकों ने माइनस डिग्री के तापमान में लड़ा गया था। इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने भारत के कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। जिसको वापस कब्जे में लेने के लिए भारतीय सरकार ने "ऑपरेशन विजय" चलाया। 14 जुलाई 1999 में उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय के सफल होने की घोषणा की थी।

इसमें से 4 ऐसे भारतीय सेना का अफसर है जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपना योगदान दिया था और उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें इस अदम्य सम्मान से नवाजा गया था। इन अफसरों को कारगिल युद्ध के नायकों या योद्धाओं के नाम से जाना जाता हैं। इनमे से कई ऐसे हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान का बलिदान दिया और अब उनका नाम समय के साथ गुमनामी में जा रहा है। लेकिन कारगिल विजय दिवस के माध्यम से समाज को फिर उन नायकों के नाम याद दिलाना आवश्यक है। आइए इस कारगिल दिवस में उन कारगिल युद्ध के नायकों के बारे में जानें, जिन्हें उनके अभूतपूर्व योगदान और युद्ध में उनके बलिदान के लिए सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है और हर साल उनके इस बलिदान को याद करे। देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले इन नायकों के नाम इस प्रकार है -

विक्रम बत्रा
 

विक्रम बत्रा

विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 में पालमपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई अपनी मां से ली जो की स्कूल टीचर थी। विक्रम बत्रा बचपन से ही आर्मी में जाना चाहते थे। विक्रम बत्रा पढाई के साथ स्पोर्ट्स में भी काफी अच्छे थे। उन्होंने यूथ पार्लियामेंट कंपटीशन, दिल्ली में टेबल टेनिस के साथ कई अन्य खेलों में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व किया है। कॉलेज के दिनों से ही विक्रम सीडीएस की परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे थे। उन्होंने एमए की पढ़ाई के साथ-साथ ट्रैवल एजेंसी में ब्रांच मैनेजर के तौर पर काम भी किया। लेकिन आर्मी में जाने का उनका सपना अटल था। उनके इस अटल विश्वास से उन्होंने अपना सपना पूरा किया। वर्ष 1996 में विक्रम बत्रा ने सीडीएस की परीक्षा पास की और देहरादून की इंडियन मिलिट्री एकेडमी ज्वाइन से आर्मी में जाने की शिक्षा प्राप्त की।

19 महीनों की आईएमए ट्रेनिंग के बाद उन्हें लेफ्टिनेंट पद पर 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स में कमीशन किया गया। उनकी पोस्टिंग जम्मू और कश्मीर के बारामुला जिले में हुई। यहां उन्होंने आतंकवाद विरोधी अभियान का कार्यकाल पूरा किया। इस कार्यकाल को पूरा कर 5 जून 1999 में एकाएक आई युद्ध की खबर से उनकी बटालियन को द्रस जाने के निर्देश दिए गए। द्रस पहुंचने के बाद जुलाई में विक्रम बत्रा और उनके साथियों को पॉइंट 5140 पर वापस कब्जा करने के अभियान पर भेजा गया। पॉइंट 5140 के अभियान के सफलतापूर्वक पूरा होने पर जिस स्लोगन को उनके द्वारा बोला जाना था, उसे चयन करने के लिए उनके अधिकारियों ने उन्हें अवसर दिया। इस पर विक्रम ने "ये दिल मांगे मोर" लाइन का चयन किया और जैसे ही उन्होंने और उनकी पलटन ने पॉइंट 5140 पर कब्जा किया तो उन्होंने इस स्लोगन का प्रयोग कर अपने हायर ऑफिसर को सूचना दी।

प्वाइंट 5140 के बाद सबसे मुश्किल प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने के अभियान के लिए भी विक्रम बत्रा को ही चुना गया। इस अभियान को पूरा करने का पूरा जिम्मा विक्रम पर आ गया था। अपने नेतृत्व में उन्हें अब प्वाइंट 4875 पर भारत का कब्जा फिर से हासिल करना था। 7 जुलाई 1999 में प्वाइंट 4875 को पूरा करने के इस अभियान में अपने एक साथी को बचाने के दौरान और काउंटर अटैक में विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन उनकी पलटन ने 4875 प्वाइंट पर भारत का कब्जा हासिल किया। उनके इस योगदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

मनोज कुमार पांडेय

मनोज कुमार पांडेय

कारगिल युद्ध लड़ने वाले नायक मनोज कुमार पांडेय जिनका जन्म 25 जून 1975 में सीतापुर, उत्तर प्रदेश के एक गांव में हुआ था। मनोज कुमार पांडेय का बचपन से आर्मी में जाने का सपना था। उन्होंने अपने इस सपने को पूरा कर कारगिल युद्ध में अपना योगदान दिया। मनोज कुमार पांडेय पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्ट्स में भी बहुत अच्छे थे। वह मुख्य रूप से बॉक्सिंग और बॉडी बिल्डिंग में रूचि रखते थे। 1990 में उन्हें जुनियर एनसीसी उत्तर प्रदेश डायरेक्टर द्वारा बेस्ट कैडेट घोषित किया गया।

जब वह आर्मी में भर्ती के लिए इंटरव्यू देने गए तो, आर्मी सर्विस सिलेक्शन बोर्ड के इंटरव्यू के दौरान उनसे एक सवाल किया था। वो सवाल था कि वह "आर्मी क्यों ज्वाइन करना चाहते हैं" तो उन्होंने इस प्रश्न के उत्तर के बारे में एक बार भी नहीं और एक दम जवाब देते हुए कहा कि "वह परम वीर चक्र जीतना चाहते हैं।" किसी को क्या पता था कि इंटरव्यू में दिए इस जवाब को सच साबित कर दिखाएंगे। कारगिल युद्ध में उनके योगदान के लिए उन्हें 2004 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

1999 में कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें खालुबार में भारत का वापस कब्जा हासिल करने के लिए भेजा गया। खालुबार में वापस कब्जे के अभियान पर आगे बढ़ते हुए रोशनी की वजह से उनकी पलटन एक कमजोर स्थिति में आ गए लगातार भारी गोलाबारी के दौरान अपनी सूझबूझ से उन्होंने अपनी पलटन को एक लाभकारी स्थिति में रखा। और एक तरफ से वह खुद गए और दूसरी तरह से अपनी पलटन के कुछ और सैनिकों को भेजा पहले बंकर और दूसरे बंकर पर दो-दो दुश्मनों मार गिरा कर वह तीसरे स्थान की ओर बढ़ने लगे इसी दौरान उन्हें पैरों और कंधे पर गहरी चोट आई। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी वह चौथे स्थान पर हमला करके आगे बढ़े और उसे नष्ट करने के दौरान उन्हें माथे पर गहरी चोट आई लेकिन उन्होंने खालुबार पर भारत का कब्जा वापस हासिल किया लेकिन 3 जुलाई को उस अभियान में वह वीरगति को प्राप्त हुए।

 

योगेंद्र सिंह यादव

योगेंद्र सिंह यादव

सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में औरंगाबाद अहीर, बुलंदशहर जिले, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके पिता करण सिंह यादव ने भी भारतीय सेना में सेवा दी थी। योगेंद्र सिंह यादव ने 16 साल की उम्र में आर्मी ज्वाइन की थी। योगेंद्र सिंह यादव घटक फोर्स के कमांडर प्लाटून का हिस्सा थे। यादव भी कारगिल युद्ध के नायकों में से एक हैं। कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें टाइगर हिल के तीन बंकरों पर कब्जा करने के अभियान पर भेजा गया।

इस अभियान पर 4 जुलाई 1999 में योगेंद्र सिंह यादव को भेजा गया। जिन बंकरों को नष्ट करने के अभियान पर यादव को भेजा गया था वह बंकर 1000 फीट की ऊंचाई पर बर्फ से ढके हुए थे। उन बंकरों तक जाने के लिए रस्सियों से बांधा गया ताकि वह दुश्मनों के बंकर तक पहुंच सके। अचानक दुश्मन के बंकर से मशीन गन और रॉकेट की आग से प्लाटून कमांडर और अन्य दो सैनिक मारे गए। उसी दौरान कमर और कंधे पर गोली लगने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और वह बची हुई 60 फीट की दूरी तय कर चोटी पर पहुंचे।

गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने पहले बंकर में ग्रेनेड फेक कर उसे तबाह कर दिया और चार पाकिस्तानियों को मार गिराया। जिससे गोलीबारी बेअसर हो गई और उनकी पलटन के बाकी साथियों को ऊपर आने में आसानी हुई। इसके बाद एक-एक करके सभी बंकरों को नष्ट कर दिया गया और प्लाटून ने टाइगर हिल पर भारत का कब्जा वापिस हासिल किया। इस अभियान के दौरान सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव 12 गोलियां लगी थी। उनके इस योगदान के लिए भारतीय सरकार ने उन्हें परम वीर चक्र से नवाजा।

 

 

संजय कुमार

संजय कुमार

संजय कुमार का जन्म 3 मार्च 1976 में बिलासपुर जिले के कलोल गांव, हिमाचल प्रदेश में हुआ। संजय कुमार ने आर्मी ज्वाइन करने के लिए चार बार आवेदन किया था। जिसमें से शुरुआती तीन बार उनके आवेदन को रिजेक्ट कर दिया गया था। आखिरकार चौथी बार में उनका सिलेक्शन हुआ और उन्होंने आर्मी ज्वाइन की। संजय कुमार 13 जम्मु कश्मीर बटालियन का हिस्सा थे। उन्हें 4 जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान एरिया फ्लैट टॉप पर कब्जा करने का काम सौंपा गया।

इस काम के लिए उन्हें प्रमुख स्काउट वाली टीम दी गई। चट्टान पर पहुचने के बाद वहां से करीब 150 मीटर की दूरी पर दुश्मनों के बंकर थे। जहां से लगातार चल रही मशीन गन की आग से टीम नीचे गिर गई थी। संजय कुमार ने स्थिति समझते हुए और एरिया फ्लैट टॉप पर कब्जा करने के लिए अकेले ऊपर को ओर गए और दुश्मन के बंकर की ओर ऑटोमेटिक आग से चार्ज किया। लेकिन उसी दौरान उन्हें सीने पर और बांह पर दो गोलियां लगी।

गंभीर रूप से घायल और बहते खून के बाद भी वह नहीं रुके और बंकर की ओर लगातार आगे बढ़ते रहें। आमने सामने की इस लड़ाई में उन्होंने तीन दुश्मनों को मार गिराया। उसके बाद वह दूसरे बंकर की ओर बढ़े और इसे देख दुश्मनों को चौका दिया और दुसरे बंकर पर भारत का कब्जा वापस हासिल कर लिया। कारगिल में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें परम वीर चक्र से नवाजा गया है।

 

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English summary
Param vir chakra is a very prestigious award given to an army officer. Only 21 officer have received this award till date. 4 of them are from kargil war.
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