International Women's Day Speech Essay Article Idea 2022 वैसे तो हर दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए, लेकिन यूनाइटेड नेशन से मंजूरी के बाद हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष महिला दिवस 2022 की थीम 'Women's Of Tomorrow रखी गई है। इस थीम का अर्थ है आने वाला कल महिलाओं का होगा। महिला दिवस पर स्कूल कॉलेज आदि में भाषण, निबंध और लेख लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। ऐसे में अगर आपको भी महिला दिवस पर भाषण, महिला दिवस पर निबंध और महिला दिवस पर लेख लिखना है, तो करियर इंडिया हिंदी आपके लिए महिला दिवस पर भाषण निबंध लेख लिखने का सैम्पल लेकर आया है। जिसकी मदद से आप आसानी से महिला दिवस पर भाषण निबंध लेख लिख सकते हैं।

महिला दिवस 2021 थीम क्या है ?
महिला दिवस 2022 की थीम 'वुमन्स ऑफ टॉमारो' है, जिसका अर्थ है आने वाला कल महिलाओं का होगा। यदि हम आज महिलाओं की सुरक्षा करेंगे तो आने वाला कल हमारे लिए सुरक्षित होगा। महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए हम सबको एक होना होगा।
महिला दिवस स्पीच एस्से आईडिया
8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, ऐसे में आप सभी को महिला दिवस पर भाषण और निबंध की तैयारी करनी होगी। इसलिए आपके काम को आसान बनाने के लिए, हम महिला दिवस पर प्रेरणादायक भाषण और निबंध का ड्राफ्ट लेकर आए हैं, जिसकी मदद से आप आसानी से महिला दिवस पर निबंध भाषण लिख सकते हैं।
International Women's Day 2022 Speech Essay Article Idea Sample In Hindi
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निबंध कैसे लिखें ड्राफ्ट आइडिया
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। महिलाओं के सम्मान और उनके अतुलनीय योगदान के लिए इस दिन को चिन्हित किया गया है। महिला दिवस पर दुनियाभर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए स्कूल और कॉलेज में प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। यदि यह कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाएं तो आज के दौर में छात्र महिला दिवस के महत्व को नहीं समझ पाएंगे। ऐसे में यदि हमें महिला दिवस पर निबंध लिखना है तो सबसे पहले महिलाओं के महत्व को समझना होगा। क्योंकि महिलाओं के बिना इस सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता। महिला दिवस पर निबंध में इतिहास, महत्व और निष्कर्ष को शामिल करना आवश्यक है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निबंध (Essay On Women's Day)
महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय बनाने का विचार क्लारा ज़ेटकिन नामक महिला की देन है। 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में क्लारा ज़ेटकिन ने इस विचार का सुझाव दिया। वहां 17 देशों की 100 महिलाएं थीं और वह सब सर्वसम्मति से उसके सुझाव पर सहमत हुए। उसके बाद, पहली बार 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में महिला दिवस मनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक बनाने के लिए 1975 में 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। संयुक्त राष्ट्र 1996 में इस दिन को नई थीम के साथ मनाया, पहली बार महिला दिवस की थीम "अतीत का जश्न, भविष्य के लिए योजना बनाना" थी।
महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने और किसी प्रकार के लैंगिक मतभेद का शिकार होने से बचाने के लिए लंबे समय से प्रयास जारी हैं। लेकिन अभी अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम "बैलेंस फोर बेटर" है जिसके तहत पूरे साल लैंगिक संतुलन व समानता के कार्यक्रम चलाए जाएँगे ताकि महिलाओं की स्थिति बेहतर हो। सही मायने में महिलाओं की बेहतरी के लिए संतुलन बनाने के लिए सिर्फ क़ानून बनाना काफी नहीं बल्कि उन सभी पहलुओं व मुद्दों की निशानदेही करनी जरुरी है जिन पर अभी भी बहुत काम करने की दरकार है। हमारे देश में महिलाओं को सामाजिक,आर्थिक,शारीरिक,व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर कैसी मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं और उन पर क्या किया जा सकता है इस पर विमर्श करना जरुरी है।
पोषण- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2020-21 के अनुसार भारत में मां बनने की उम्र वाली 53 फीसदी महिलाऐं खून की कमी यानी एनीमिया की शिकार हैं। कुछ ही पहले ऐडू स्पोर्ट्स द्वारा किए गए 8वें सालाना हेल्थ एण्ड फिटनेस सर्वे और कुछ अन्य स्कूल सर्वे में पाया गया कि लड़कों की तुलना में लड़कियों का बीएमआई असंतुलित होता है। लड़कियों की शारीरिक मजबूती और ऊर्जा में भी काफी कमी पाई गई। शोधकर्ताओं के अनुसार इसका मूल कारण यह है कि भले ही लड़कियां भी बाहर जाती है और कामकाज भी करती हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से अब भी बड़ी संख्या में माता-पिता अपने बेटों को अच्छी खुराक देना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें बाहर भाग-दौड़ करनी पड़ती है,वे खेलते कूदते हैं और उन्हें कमाना हैं। यह स्थिति और सोच बदलनी चाहिए. घर की लड़कियों को भी लड़कों जैसी ही खुराक मिलनी चाहिए।
कम उम्र में विवाह- शिक्षा में कमी, पुरानी सोच और हमारे रूढिगत सामाजिक ढाँचे के कारण अब भी ग्रामीण भारत में लड़कियों को एक जिम्मेदारी या पराया धन माना जाता है और पढ़ने-लिखने और खेलने-कूदने की उम्र में उनका विवाह कर दिया जाता है.जिस उम्र में बच्ची खुद को ठीक से नहीं संभाल पाती उस उम्र में उसकी शादी हो जाती है। वहां उसे खुद को अच्छा साबित करने के लिए न सिर्फ ढेर सारा काम करना पड़ता है बल्कि कई बार तो वह किशोरावस्था में ही मां भी बन जाती है। तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद अब भी 27 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम की आयु में हो जाता है। इसमें पश्चिम बंगाल और राजस्थान काफी आगे है। यूनिसेफ की ओर से जारी "फैक्टशीट चाइल्ड मैरिजेज 2019" शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश न लगाया गया तो देश में 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो जाएगी।
बोडी शेमिंग- हमारे समाज में अक्सर कहा जाता है कि लड़कों की सुंदरता नहीं कमाई देखी जाती है लेकिन लड़कियों के मामले में स्थिति इसके उलट है। अच्छे वर की चिंता में बेटियों पर सुन्दर, स्लिम, गोरी और दमकती-चमकती दिखने के लिए दबाव बनाया जाता। उन्हें हर वक्त खुद को आकर्षक दिखाने की चिन्ता सताती रहती है। परिवार के सदस्य हों या फ्रेंड्स हों , किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन हो या मीडिया सब जगह महिलाओं की शारीरिक खूबसूरती का इतना बढ़ाचढ़ा कर बखान किया जाता है कि वे अपने वजन, रंग और शरीर की बनावट को लेकर ओवर कौंशस हो जाती है। लड़की जरा भारी शरीर की हो तो मोटी, सांवली या पक्के गेहुएं रंग की हो तो उसे काली कहने में लोग जरा भी वक्त नहीं लगाते. जबकि बेटी के अंदर गुणों का विकास जरूरी है, ताकि वो अंदर से खूबसूरत इंसान बने।
कामकाज में लैंगिक विभाजन- हमारे समाज ने कामकाज,खेकूद और प्रोफेशन का भी लैंगिक विभाजन कर दिया है। आज भी आपको इलेक्ट्रिक मिस्त्री,प्लम्बर या कर मैकेनिक के रूप में लडकियां अपवाद स्वरूप देखने को मिलेंगी। माना कि क्रिकेट, फ़ुटबाल, कुश्ती, कबड्डी और कराटे जैसे खेलों में लड़कियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, लेकिन उनकी संख्या कितनी काम है यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। इस दीवार को ढाहना है तो शुरू से ही बेटियों से किसी काम के लिए यह न कहें कि 'यह काम लड़कियों के लिए नहीं है।' बेटी को रसोई का सामान लाने तक सीमित न करें। चाहे घर में बल्ब बदलना हो, साइकिल में हवा भरनी हो, फ्यूज में वायर लगाना हो या दीवार में कील ठोकनी हो, ये सब काम बेटी से भी करवाएं। उसे कंप्यूटर ठीक करना, बाइक या कार रिपेयरिंग, इलेक्ट्रीसिटी के छोटे-मोटे काम सिखाएं.शुरू से ही स्पोर्ट्स में सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करें।
पीछे छूटा सेहत का मुद्दा- आज की तारीख में हर ओर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, नौकरी या रोजगार में लिंग भेद, यौन हिंसा, तलाक, हलाला व अन्य मुद्दों पर तो खूब बात हो रही है, लेकिन इन सबके बीच एक अहम् मुद्दा कहीं पीछे छूट गया है। यह मुद्दा महिलाओं की सेहत से जुड़ा है। अक्सर महिलाएं घर के दूसरे सदस्यों का खूब ख्याल रखती हैं लेकिन अपने पोषण, सेहत और मानसिक परेशानियों को लेकर चुप्पी साधे रखती हैं। अक्सर वे चिकित्सक के पास तब तक नहीं जातीं जब तक स्थिति बहुत गंभीर न हो जाए। महिलाओं की सेहत भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुषों की इस बात पर गौर करना जरूरी है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भाषण International Women's Day Speech In Hindi 2022
International Women's Day 2022 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों कैसे मनाया जाता है