Chaitra Navratri 2022 Vikram Samvat 2079 वैसे तो भारत समेत पूरी दुनिया में नया वर्ष 1 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन प्राचीन गौरवमयी संस्कृति और सभ्यता को सहेजने वाले अपने देश भारत में सदियों से नव संवत्सर को नव वर्ष के आरंभ उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज 2 अप्रैल 2022 को चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से भारतीय नवसंवत आरंभ हो रहा है। भारतीय नववर्ष से जुड़ी पौराणिक सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं पर एक नजर....
अपने देश भारत का नव संवत्सर यानी नया वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। विक्रम संवत और शक संवत भारतीय नववर्ष की पहचान है। यह दोनों संवत्सर सूर्य और चंद्र की परिभ्रमण पर आधारित है और पूरी तरह वैज्ञानिक है। हमारा संवत्सर दुनिया का सबसे प्राचीन संवत्सरों में माना जाता है और यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी सही है। कलयुग के प्रारंभ में युधिष्ठिर संवत प्रचलित था। विक्रम संवत भी अंग्रेजी कैलेंडर से पहले का है। भारत के साथ ही चीन, मिस्त्र, फारस, यूनान, रोम और बेबीलोनीया आदि देशों में अपने-अपने संवत्सर होते थे। चीन का संवत्सर 163 ईसा पूर्व का है। यूनानी जब मिस्त्र को जीत लिया तो उन्होंने अपना यूनानी संवत्सर चलाया। यह सभी संवत्सर अंग्रेजों के संवत्सर से पहले के हैं और सभी अपने अपने देशों में अपने अपने संवत के अनुसार नववर्ष मनाते हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 75 साल होने के होने को है लेकिन हम सब उनकी मानसिक गुलामी से पूरी तरह आजाद नहीं हो सके हैं, तभी तो अंग्रेजी कैलेंडर ही अधिक प्रचलित है। इस कैलेंडर का भारत पर इतना अधिक प्रभाव पड़ गया है कि हम अपने देश का मूल नव वर्ष यानी नव संवत्सर को लगभग भूल गए हैं। आज भारतीय नव संवत्सर गिने-चुने स्थानों पर ही मनाया जाता है। माना जाता है कि दुनिया भर में अंग्रेजों द्वारा पहली अप्रैल को नया साल मनाया जाता था, किंतु कालांतर में कई जगहों से एक जनवरी से मनाना शुरू किया गया जो आज भी पूरी दुनिया में सर्वाधिक प्रचलित है।
शक संवत क्या है? विक्रम संवत क्या है? उसको क्यों मनाया जाता है? ऐसा कई सवाल आज भी लोगों के मन में उठते हैं। अंग्रेजी नव वर्ष से 75 वर्ष पूर्व भारत में विक्रम संवत आरंभ हुआ था। सम्राट कनिष्क ने विदेशी आतंकियों को जब भारत से खदेड़ दिया, तो उन्होंने इस उपलक्ष में शक संवत आरंभ किया। यह अंग्रेजी वर्ष से 78 वर्ष बाद आरंभ हुआ है। गायत्री मंत्रों में 360 अक्षर होते हैं। एक अक्षर एक-एक दिन का घोतक है, इस प्रकार 360 दिनों का वर्ष होता है। चंद्र के दो पक्ष दो पक्ष कृष्ण और शुक्ल पक्ष माने जाते हैं। 15 दिन कृष्ण पक्ष में और 15 दिन शुल्क पक्ष में होते हैं। इसके अनुसार 12 मास का एक वर्ष होता है।
पौराणिक मान्यता है कि महाप्रलय के बाद प्रजापति ब्रह्मा ने सूर्य चंद्र नक्षत्र स्वर्ग पृथ्वी और अंतरिक्ष की रचना की। उसी दिन प्रजापति ब्राह्मण ने नव संवत्सर की भी रचना की थी। जिस दिन प्रजापति ब्रह्मा ने इन सब की रचना की थी, वह दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का था। इसलिए भारतीय नव संवत्सर भारत का नया वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही शुरू होता है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार नव संवत्सर ब्रह्मा जी के शरीर से उत्पन्न हुआ है, इसलिए नव संवत्सर की पूजा की जाती है। नव संवत्सर की पूजा सृष्टि रचयिता प्रजापति ब्रह्मा की ही पूजा है। प्रजापति ब्रह्मा की तरह नव संवत्सर भी नए नए कार्यों का सृजन करता है। शतपथ ब्राह्मण से प्रमाणित होता है कि भारतीय कालगणना सृष्टि के दिन से ही प्रारंभ हो गई थी। 12 राशियों में सूर्य की गणना के अनुसार महीने के नाम रखे गए हैं चैत्र, वैशाख ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विनी, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ, फागुन। हर 3 साल बाद मलमास यानी अधिक मास आता है।
ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है कि दीर्घतमा ऋषि ने युग युग तक तपस्या करके ग्रह उपग्रह तारा नक्शा आदि की स्थितियों का आकाश मंडल में पता लगाया था, जिसके आधार पर आगे चलकर ज्योतिष्य शास्त्रों की रचना हुई। जिसे वेद का अंग वेदांग कहते हैं। ऋषियों ने ही 27 नक्षत्रों की खोज की। इन नक्षत्रों का यज्ञ आदि में पूजन होता है। नक्षत्रों में कार्तिकेय को अग्नि, रोहिणी को प्रजापति, मृगशिरा को सोम, आद्रा को रुद्र, पुनर्वसु को अदिति, तिष्य को बृहस्पति, मघा को पितर, पूर्वाफाल्गुनी को अर्यमा, उत्तरफाल्गुनी को भग, हस्त को सावित्री, चित्रा को इंद्र, स्वाति को वायु, विशाखा को इंद्राणी मानते हैं। अनुराधा को मित्र, रोहिणी को चंद्र तथा विचतो नक्षत्र को पितरों का देवता कहा गया है। उन्होंने विश्व ब्राह्मण के आकार की उपमा अंडे से की है। उनका नाम ब्रह्म रूप मानकर ब्रह्मांड रखा। जिसके अंतर्गत अनंत लोक में अनेक सूर्य, अनेक चंद्रमा, ग्रह और नक्षत्र ब्रह्मांड में विद्वान हैं। जिनके कारण ही नवनिर्माण और विनाश होते हैं। भारतीय नव संवत्सर की कल्पना इसी ब्रह्माण के ज्ञान पर आधारित है। इस प्रकार हमारी काल गणना पद्धति संपूर्ण ब्रह्माण की गतिविधि के निरीक्षण, परीक्षण, अनुशीलन के बाद नियत की गई है, जिसमें हजारों वर्षों के पश्चात भी कोई अंतर नहीं पाया है। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण ठीक उसी प्रकार दिखाई पड़ते हैं, जैसे हमारे सूर्य सिद्धांत में वर्णित मिलते हैं।
नव संवत्सर की संस्कृति ही नहीं धार्मिक मान्यता भी बहुत अधिक है। दरअसल इस दिन से चैत्र नवरात्र आरंभ होते हैं। अगले दिन 9 दिनों तक मां आदिशक्ति दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है। इस दौरान लोक व्रत रखते हैं। मां दुर्गा के मंदिर में विशेष पूजा होती है। भजन कीर्तन और रात्रि जागरण किए जाते हैं। नवरात्र के अंतिम दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री राम के जन्म उत्सव के उपलक्ष में मनाया जाता है। इस तरह नव संवत्सर का स्वागत और नवरात्रि का उत्सव संपन्न होता है।
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