Netaji Subhas Chandra Jayanti 2023: नेताजी की प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं

भारत में हर साल पराक्रम दिवस 23 जनवरी के दिन मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 2021 में की गई थी। आपको बता दें की भारत में पराक्रम दिवस नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के दिन मनाया जाता है। उनकी तमाम उपलब्धियों में से एक माना जा सकता है। नेता जी एक सच्चे देश भक्त थें जिन्होंने ब्रिटिशे सेना के खिलाफ लड़ने और देश को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए भारतीय सिविल सेवक के पद से इस्तीफा तक दे दिया था। उन्हें जलियांवाला बाग हत्याकांड को देखते हुए और उस दौरान देश में चल रहे ब्रिटिश राज के बहिष्कार में हिस्सा लेकर इस पद से इस्तेफा दिया था।

इसके बाद भी वह इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुए और गांधी के द्वारा चलाए गए कई अभियानों में उन्हें अपना साथ और योगदान दिया। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन उन्हें रोकना इतना आसान नहीं था। जेल की अवधि के दौरान वह कलकत्ता के के 5वें मेयर बने और उनका कार्यकाल 1930 से 1931 तक चला। इसके अलावा भी उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।

Netaji Subhas Chandra Jayanti 2023: नेताजी की प्रमुख उपलब्धियां क्या हैं, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं

अपने पूरे जीवन काल में उन्हें ब्रिटिशों द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचतारों के खिलाफ आवाज उठाई और भारत को इनसे आजादी दिलवाने के लिए आजद हिंदी फौज की स्थापना की। जिसमें कई भारतीयों ने हिस्सा लिया और प्रशिक्षण हासिल किया। आज नेता जी की 126 जयंती पर इस लेख के माध्यम से आपको उनकी उपलब्धियों के बारे में बताएं। आइए जाने-

भारतीय सिवल सेवा की परीक्षा

बोस शुरुआत से ही पढ़ाई में अच्छे थें उन्होंने अपनी प्रारंभिक से बैचलर चक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारतीय सिविल सेवा की तैयारी करने का फैसाला लिया। एक सिविल सेवक के तौर पर कार्य करने के अपने सपने को पूरा भी किया। आपको बता दें शुरुआती दशकों में भारतीय सिवल सेवा की परीक्षा का लंदन में हुआ करती थी। जिसकी तैयारी और परीक्षा में शामिल होने से लिए वह लंदन गए। वर्ष 1919 में परीक्षा में शामिल होकर उन्हों सबसे अधिक स्कोर प्राप्त किए और इस परीक्षा में उन्हें शीर्ष स्थान प्राप्त किया। हालांकि उन्होंने इस पद पर ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार चलना था। लेकिन वह इस पद पर ज्यादा समय के लिए नहीं रहे। वर्ष 1921 में जलियांवाला बाग कांड के बाद हुए ब्रिटिश बहिष्कार में उन्होंने इस पद से इस्तेफा दिया।

अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष

सिवल सेवक के पद से इस्तेफा देने के बाद वह इंडियन नेशनल क्रांग्रस में शामिल हुए जहां उन्हें गांधी जी द्वारा चित्तरंजन दास के साथ कार्य करनी कि सलाहा प्राप्क हुई। जहां बोस को राजनीतिक गुरु के रूप में चित्तरंजन दास का साथ प्राप्त हुआ। उनके कार्य आदि को देखते हुए उन्हें 1923 में युवा शिक्षक और बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवकों का कमांडेंट (भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यत्र) बनाया दिया गया।

स्वराज समाचार की शुरुआत

हो रही घटनाओं को ध्यान में रखते हुए और लोगों के जोड़ने के लिए बोस ने स्वराज समाचार पत्र की शुरुआत की। बोस स्वराज की वकालत करते थे और उनकी मांग भी पूर्ण स्वराज की ही थी। इसके अलावा उन्होंन चित्तरंजन दास द्वारा स्थापित किए "फॉरवर्ड" समाचार में संपादक के रूप में भी कार्य किया।

कलकत्ता नगर निगम के सीईओ

बोस ने 1924 में कलकत्ता नगर निगम के सीईओ तौर पर कार्य किया कर रहे थे उस समय उनके राजनीतिक गुरु दास कलकत्ता के मेयर के रुप में चुने गए थे। वर्ष 1925 में उन्होंने एक विरोध मार्च का नेतृत्व किया जिसे देखते हुए उन्हें और उनके साथियों गिरफ्तार किया गया और मांडले जेल भेजा गया।

कांग्रेस के महासचिव बने बोस

विरोध प्रदर्शन के कारण गिरफ्तारी के बाद जब उन्हें 1927 में रिहाइ प्राप्त हुई। उसके बाद बोस को कांग्रेस पार्टी के महासचिव पद के लिए चुना गया। इस समय के दौरान बोस ने सीधे तौर पर ज्वाहरलाल नहेरू के साथ कार्य किया।

कलकत्ता के 5वें मेयर बने बोस

गांधी द्वारा चलाए गए सवनिय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सक्रिय रूप से हिस्स लेने के कारण उन्हें एक बार गिरफ्तार किया गया था। जेल के इस कार्यकाल के दौरान ही वह कलकत्ता के 5वें मेयर रूप में चुने गए। 5वें मेयर के रूप में उनका कार्यकाल केवल अगस्त 1930 से जुलाई 1931 था। इसी दौरन खराब तबीयत के कारण उन्हें यूरोप जाने की अनुमति प्राप्त हुई। लेकिन इस दौरान भी वह देश की सेवा से पीछे नहीं हटे और यूरोप की अपनी यात्रा के दौरान वहां रह रहे भारतीय छात्रों, बेनिटो मुसोलिनी और कई अन्य यूरोपीय राजनेताओं से मिले। यूरोप की अपनी यात्रा के दौरान ही उन्होंने "द इंडियन स्ट्रगल" पुस्तक लिखी।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष

यूरोप की अपनी यात्रा के बाद वह वर्ष 1936 में भारत आए और जनवरी, 1938 में बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। एक अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल जनवरी 1938 से अप्रैल 1939 तक चला।

योजना समिति का गठन

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जो कार्य सबसे पहले करने का सोचा वह था योजना समिति का गठन किया और इसके माध्यम से औद्योगीकरण की नीति का निर्माण किया गया।

फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन

वर्ष 1939 में बोस द्वारा अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की गई। ये ब्लॉक एक वामपंथी राष्ट्रीयवादी राजनीतिक दल था। भारतीय राष्ट्राय कांग्रेस में कार्य करने के दौरान और बोस के नेतृत्व में ये गुट उभरा था। जिसे बोस द्वारा स्थापित किया गया और उसे फॉरवर्ड ब्लॉक का नाम दिया गया। इस दल का मुख्य उद्देश्य कट्टरपंथी के तत्वों को लाना था जो कांग्रेस में नहीं था। साथ ही इस दल का उद्देश्य समानता और न्याय के सिद्धांतो का पालन करते हुए पूर्ण स्वतंत्रता को प्राप्त करना था।

आजाद हिंद फौज

उनकी विभिन्न उपलब्धियों में से महत्वपूर्ण उपलब्धि थी अजाद हिंद फौज की स्थापना करना। अपनी इस फौज की स्थापना के साथ उन्होंने एक प्रसिद्ध नारा दिया था, जिसे आज भी कोई भुला नहीं पाया है। वो नारा था "तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूंगा"। उन्हें आजाद हिंद फौज की स्थापना भारत को जल्दी से जल्दी आजादी दिलाने के मकसद से की थी। ब्रिटिश सेना और जापान के बीच हुए युद्ध में ब्रिटिश सेना को हरा दिया था। उसी दौरान बंदी बहने भारतीयों कैदियों को भारतीय सेना या आजाद हिंद फौज में शामिल किया गाय और इस फौज का गठन किया गया था।

वर्ष 1941 में बोस भारत से भाग कर जर्मनी गए थें और वहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रा के लिए कार्य किया। वहां से वह सिंगापुर गए और आजाद हिंद फौज का पुननिर्माण किया, जिसमें करीब 45,000 सैनिक शामिल हुए। न केवल पुरुष बल्कि महिलाओं ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

नेता जी की उपाधी

वर्ष 1943 में सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधी प्राप्त हुई और तभी से उन्हें नेताजी सुभाष चंद्रे बोस के नाम से पुकारा गया।

पराक्रम दिवस

उनके द्वारा स्वतंत्रका में दिए गए योगदानों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2021 में उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य उन्हें और उनके द्वारा किए गए योगदान की सम्मानित करना और देश के लिए गए उनके समर्पण कें बारे में आज की युवा पीढ़ी को बताना है। साथ ही आपको बता दें कि इस साल (2023) में उत्तर प्रदेश में एक मानव श्रंख्ला का निर्माण किया जाएगा ताकि एक विश्व रिकॉर्ड बनाया जा सकें।। जिसमें 8वीं से 12वीं कक्षा के छात्र शामिल होंगे। इसके अलावा पराक्रम दिवस पर कई अन्य तरह के कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

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English summary
Bravery Day is celebrated every year on 23 January in India. This day was started in 2021. Let us tell you that Bravery Day is celebrated in India on the birth anniversary of leader Subhash Chandra Bose. This can be considered as one of his greatest achievements. Netaji was a true patriot who even resigned from the post of Indian Civil Servant to fight against the British Army and get freedom for the country. He had to resign from this post in view of the Jallianwala Bagh massacre and by taking part in the boycott of the British Raj going on in the country during that time.
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