Lightning Strike Meaning Scientific Reason: आपने कभी आकाश से बिजली गिरने के फलस्वरूप हुए विनाश के बारे में सुना होगा। एक बार यह बिजली एक मकान की चिमनी पर गिरी। चिमनी पर 'लाइट कंडक्टर' न होने के कारण बिजली का सारा प्रहार धरती को झेलना पड़ा। मकान के आगे छोटे से हरे-भरे लॉन में 155 फुट लंबी, 3 फुट चैड़ी और 2 फुट गहरी खाई खुद गयी। इसकी रफ्तार बंदूक की गोली की रफ्तार से तीस हजार गुनी अधिक होती है।
बिजली गिरती कैसे है?
बरसात में नम तथा गरम हवा निरंतर उपर उठती रहती है। काफी उंचाई पर जाकर यह हवा ठंडी हो जाती है और इसमें से नन्हीं-नन्हीं फुहारें छूटने लगती है। धीरे-धीरे इन फुहारों की धुंध बादलों का रूप धारण कर लेती है, नम हवा के इस प्रवाह को हम 'चिमनी' प्रवाह कहेंगे। उपर जाकर नम हवा का पानी बर्फ के डेलों में बदल जाता है। ये डेले नहीं गिरते वरन् 'चिमनी' प्रवाह के सहारे उछलते-कूदते तब तक उंचे उठे रहते हैं जब तक की बादलों की चोटी नहीं आ जाती। यहां तक आते-आते हवा की गति धीमी हो जाती है। ये डेले जब नीचे की ओर आते हैं तो साथ में ठंडी हवा भी लाते हैं। इस ठंडी हवा को 'चिमनी प्रवाह' खींच लेता है। यहां फिर बर्फ के डेले बनते हैं और उपर उठते हैं और यह क्रम लगातार चलता रहता है। इस क्रिया में जो बिजली बनती है वह दो भागों में बंट जाती है। चोटी के कणों में 'पॉजिटिव' और नीचे के भाग में व्याप्त पानी की बूंदों में 'निगेटिव' विद्युत रहती है।
अब आप तनिक धरती पर उतर आइये। यहां उपर तैरते बादलों के ठीक नीचे 'पॉजिटिव पहाड़ों की चोटियों, उंची इमारतों आदि पर चढ़कर बादलों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। इनको पकड़ने के लिए एक पतला हाथ बादलों में से निकल पड़ता है, जिसकी लंबाई 50 पफुट तक हो सकती है। आकाश में यह हाथ एक प्रकार से गैसीय पथ है। इस गैसीय पथ में आकाशीय बिजली वैसा ही कार्य करती है जैसा की ट्यूब लाईट में बिजली करती है। यह गैसीय पथ एक क्षण को ठहरता है। इतनी सी देर में ही बादल में छाये 'इलेक्ट्रॉन इस पथ पर टूटकर गिरते हैं। तब यह पथ चैड़ा और चमकीला हो जाता है।
धरती के 'पॉजिटिव'चार्ज के 'सर्प' 50 फुट उपर तक उठ जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इसके चित्रा तक लिए हैं। वैज्ञानिक भाषा में ये सर्प 'सेंट एल्मों की ज्वाला' के नाम से जाने जाते हैं। यह सर्प आकाश में लटके गैसीय पथ से मिलने का प्रयत्न करते रहते हैं। जैसे ही यह सर्प उपर वाले से मिल जाता है वैसे ही धरती और आकाश के बीच एक रास्ते का निर्माण हो जाता है। जिस स्थान पर ये दोनों मिलते हैं वहीं तेज बिजली चमक उठती है और गैसीय पथ से उपर एक ओर उठने लगती है। तब हमें ऐसा महसूस होता है जैसे आकाश की बिजली नीचे की ओर आ रही हो। लेकिन ऐसा होता नहीं है। गैसीय पथ में इतनी तेज गरमी पैदा हो जाती है कि आस-पास की हवा रास्ता छोड़ देती हे। हवा के हटते ही ध्वनि की कगार टूट जाती है।
अगर बिजली तड़तड़ाना बन्द हो जाये तो संसार की सारी हरियाली ही नष्ट हो जाये। पेड़-पौधों की मुख्य खुराक नाइट्रोजन है। हमारे वायुमंडल में प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन विद्यमान है लेकिन यह नाइट्रोजन घुलनशील न होने से बेकार है। पेड़-पौधें के भोजन योग्य बनने के लिए इसे कई प्रकार की प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। मुख्य प्रक्रिया आकाश की बिजली द्वारा ही सम्पन्न होती है। बिजली की गर्मी के कारण हवा में व्याप्त कणों का तापमान तीस हजार डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। इस भीषण ताप के कारण वायुमंडल में व्याप्त नाइट्रोजन एवं आॅक्सीजन मिलकर नाइट्रोजन आक्साइड गैस बन जाती है। धरती पर आते-आते यह नाइट्रेट के रूप में बदल जाती है। यही नाइट्रेट पेड़-पौधों को हरा भरा रखता है।
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