Independence Day: नेहरू की इन पांच गलतियाों को भारत आज तक भुगत रहा है

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। वह आधुनिक भारत की नींव रखने वाले नेताओं में से थे। ब्रिटेन में पढ़े-लिखे- और प्रख्यात वकील मोतीलाल नेहरू के बेटे नेहरू ने बड़ी उम्मीदों के साथ आज़ादी के बाद देश की बागडोर संभाली। उन्होंने देश को ऐसे समय में आगे बढ़ाया जब देश की स्थिति अस्थिर थी, जिसके लिए देश आभारी है। लेकिन कहते हैं न मनुष्य गलती नहीं करेगा तो फिर कौन करेगा। इसी का उदहारण नेहरू है जिनके कुछ फैसलों के कारण देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी।

तो चलिए आज के इस आर्टिकल में आपको बताते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ऐसी कौन सी 5 गलतियां की है जिनका भुगतान भारत को आज भी भुगतान भुगतना पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि नेहरू ने केवल गलतियां ही की है वे एक महान नेता था। जिन्होंने देश की भलाई के लिए अपनी विचारों को हमेशा सर्वोपरि रखा था।

नेहरू की इन पांच गलतियाों को भारत आज तक भुगत रहा है

आज़ादी के 75 साल बाद भी नेहरू की इन पांच गलतियाों को भारत आज तक भुगत रहा है

1. कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने की घोषणा
1947 में जब पाकिस्तान के आदिवासियों ने कश्मीर पर आक्रमण किया तब भारत बहुत परेशान था। जिसके बाद अक्टूबर 1947 दिल्ली में कैबिनेट की बैठक हुई। और नेहरू की बात से सहमति न जताते हुए पटेल ने श्रीनगर में भारतीय सैन्य विमानों को भेजा और पाकिस्तानी आदिवासियों को उचित जवाब दिया गया। लेकिन साथ ही, भारत और पाकिस्तान के नेताओं को जिन्ना ने बातचीत के लिए आने के लिए आमंत्रित किया। इस पर चर्चा करने के लिए भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंट बेटन, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल एकत्रित हुए थे।

पटेल ने जिन्ना के निमंत्रण पर आपत्ति जताई और बैठक में पाकिस्तान न जाने की सलाह दी। लेकिन नेहरू और माउंट बेटन जिन्ना के निमंत्रण पर नरम थे। यह तय किया गया था कि नेहरू और माउंट बेटन बातचीत के लिए पाकिस्तान जाएंगे। लेकिन दौरे की पूर्व संध्या पर नेहरू बीमार पड़ गए और बेटन अकेले ही जिन्ना से बातचीत के लिए पाकिस्तान के दौरे पर गए।

जब बातचीत हो रही थी, नेहरू ने अचानक 2 नवंबर को आकाशवाणी रेडियो पर राष्ट्र के लिए एकतरफा संदेश की घोषणा की कि वह इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाएंगे, और भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का निर्णय होगा। कश्मीर के लोगों के बीच जनमत संग्रह द्वारा किया गया। नेहरू की उस घोषणा की भारत आज तक कीमत चुका रहा है। तब से यह मुद्दा विवादों से घिरा रहा है और कश्मीर के लोगों के बीच कई बार जनमत संग्रह की मांग उठती रहती है।

2. हिंदू कोड बिल
संसदीय चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू ने हिंदू कोड बिल को यह कहते हुए लागू किया कि इससे हिंदू समाज में सुधार होगा। लेकिन उन्होंने समान नागरिक संहिता को लागू करने में असमर्थता जताई थी।

हिंदू समाज को इस बात पर आपत्ति थी कि अगर समाज सुधार की जरूरत है तो सिर्फ हिंदू समाज, देश के सभी धर्मों के लोगों को ही इसके दायरे में क्यों लाया जाए। लेकिन उन्होंने कहा, "इसकी शुरुआत पहले हिंदू समाज से होनी चाहिए, फिर दूसरे धर्मों में इसका विस्तार किया जाएगा।" लेकिन भारत में आज तक समान नागरिक संहिता लागू नहीं हुई है। समान नागरिक संहिता बनाने के किसी भी प्रयास का अन्य धर्मों द्वारा व्यापक रूप से विरोध किया जाता है।

3. तिब्बत पर चीन को प्रतिबंध लगाने का अधिकार
नेहरू चीन से मित्रता के लिए बहुत उत्सुक थे। चीनियों को खुश करने के लिए वह ऐसे कई उपाय कर रहे थे। नेहरू ने 1953 में संयुक्त राज्य अमेरिका के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था जिसमें भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने की पेशकश की गई थी, इसके बजाय नेहरू ने चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की सलाह दी थी। यदि नेहरू ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया होता, तो भारत कई दशक पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रणनीतिक रूप से बेहद मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरा होता।

जवाहरलाल नेहरू की चीन के प्रति उदारता का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। नेहरू ने 29 अप्रैल, 1954 को चीन के साथ पंचशील के सिद्धांत के रूप में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के साथ भारत ने तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार कर लिया। तिब्बत को विश्वास में लिए बिना नेहरू ने मित्रता के लिए तिब्बत पर चीन के अधिकार को मंजूरी दे दी।

विश्लेषकों का मानना है कि भारत के उसी समझौते के बाद से हिमालय में भू-राजनीतिक स्थिति हमेशा के लिए बदल गई। तिब्बत में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने विस्तार की प्रक्रिया शुरू की, जो आज तक जारी है। तिब्बत में विस्तार करने की चीन की योजना के परिणाम ने आज चीन को बल दिया है। कभी-कभी चीन नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करता रहता है और यहां तक कि तिब्बत के दक्षिणी भाग के रूप में अरुणाचल प्रदेश राज्य का दावा भी करता है। नेहरू की एक गलती से भारत को भारी नुकसान हुआ है।

4. भारत-चीन युद्ध - जब चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा

नेहरू चीन के साथ सीमा विवादों को शांति और सौदों से सुलझाना चाहते थे। उसकी मंशा पर किसी को शक नहीं हुआ। लेकिन वह चीनी दुष्ट चालों को पढ़ने में विफल रहे थे। चीन के साथ विवादों को सुलझाने के लिए उन्होंने 'पंचशील' समझौते के तहत चीन को तिब्बत पर अधिकार दिया। लेकिन भारत को चीन पर नेहरू के भरोसे की भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

1962 में चीन ने भारत पर हमला किया। नेहरू का "हिंदी चीनी भाई-भाई" नारा काम नहीं आया, और चीन के साथ युद्ध के दौरान भारत ने अपने बहादुर बेटों को बड़ी संख्या में खो दिया था। जबकि पटेल ने चीन से संभावित खतरे को भांप लिया था। अपनी मृत्यु से थोड़ा पहले, 7 नवंबर, 1950 को उन्होंने नेहरू को एक पत्र लिखा था। पत्र में भारत को पाकिस्तान और चीन से सावधान रहने की सलाह दी गई थी। लेकिन पटेल के डर को नेहरू ने हवा में उड़ा दिया था।

5. राज्यों का विभाजन
नेहरू ने भाषाई आधार पर मद्रास राज्य को आंध्र प्रदेश बनाने के लिए और बॉम्बे राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात बनाने के लिए विभाजित किया। जिसके बाद से आज तक भाषाई राज्यों का गठन जारी है। आज हालत यह है कि देश में एक दर्जन से अधिक राज्य अलग राज्य के निर्माण पर आग उगल रहे हैं।

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English summary
The first Prime Minister of India was Pandit Jawaharlal Nehru. He was one of the leaders who laid the foundation of modern India. He led the country at a time when the situation in the country was unstable, for which the country is grateful. But it is said that if a man will not make a mistake, then who will? An example of this is Nehru, due to some of whose decisions the country had to pay a heavy price.
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