हीराबेन की संघर्ष भरी कहानी, कभी मां का प्यार नसीब नहीं हुआ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे विश्वनायक गढ़ने वाली मां हीराबेन मोदी का निधन न केवल पुत्र के लिये बल्कि समूचे राष्ट्र के लिये एक अपूरणीय क्षति है, एक आघात है। भारतीय मूल्यों एवं आदर्शों की शताब्दी यात्रा का विराम होना नि

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे विश्वनायक गढ़ने वाली मां हीराबेन मोदी का निधन न केवल पुत्र के लिये बल्कि समूचे राष्ट्र के लिये एक अपूरणीय क्षति है, एक आघात है। भारतीय मूल्यों एवं आदर्शों की शताब्दी यात्रा का विराम होना निश्चित ही देश के हर व्यक्ति के लिये शोक का विषय है, लेकिन यह वक्त शोक का नहीं, बल्कि उनके आदर्शों एवं जीवन-मूल्यों को आत्मसात करने का है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकता इसलिए उसने माँ को बनाया। हीराबेन ऐसी ही विलक्षण मां थी, एक देवदूत थी। कहने को वह इंसान थी, लेकिन भगवान से कम नहीं थी। वह एक मन्दिर थी, पूजा थी और वह ही तीर्थ थी। वह न केवल नरेन्द्र मोदी की जीवनदात्री बल्कि संस्कार निर्मात्री थी, बल्कि इस राष्ट्र आदर्श मां थी। उनके निधन से ममत्व, संस्कार, त्याग, समर्पण, सादगी एवं आदर्शो का युग ठहर गया है।

हीराबेन की संघर्ष भरी कहानी, कभी मां का प्यार नसीब नहीं हुआ

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी मां को श्रद्धांजलि देते हुए जो कहा, वह प्रेरणा की एक नजीर है। उन्होंने कहा कि, ''शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम... मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है। मैं जब उनसे 100वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से।' मोदी जब-जब मां से मिलने जाते, मां-बेटे का यह मिलन एवं संवाद देश एवं दुनिया के लिये एक प्रेरणा बनता रहा है। मोदी के लिये मां हीराबेन, यह सिर्फ एक शब्द नहीं है, बल्कि उनके जीवन की यह वो भावना है जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, प्रेरणा कितना कुछ समाया है। मां हीराबेन, ने मोदी का सिर्फ शरीर ही नहीं गढ़ा बल्कि मन, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास गढ़ा है। और ऐसा करते हुए उसने खुद को खपा दिया, खुद को भुला दिया।

'मां हीराबेन'-इस लघु शब्द में प्रेम की विराटताध्समग्रता निहित है। उसके अंदर प्रेम की पराकाष्ठा है या यूं कहें कि वो ही संपूर्ण प्रेम की पराकाष्ठा है। मोदी परिवार के लिए मां हीराबेन प्राण थी, शक्ति थी, ऊर्जा थी, प्रेम थी, करुणा थी, और ममता का पर्याय थी। वे केवल जन्मदात्री ही नहीं जीवन निर्मात्री भी थी। वे नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण परिवार के विकास का आधार थी। उन्होंने अपने हाथों से इस परिवार का ताना-बाना बुना है। इस परिवार के आकार-प्रकार में, रहन-सहन में, सोच-विचार में, मस्तिष्क में लगातार उन्नतिशील एवं संस्कारी बदलाव किये थे। वे मां, मां ही थी, जिसने इस परिवार की तकदीर और तस्वीर दोनों ही बदली है।

मां हीराबेन का सौ वर्षों का संघर्षपूर्ण जीवन भारतीय आदर्शों का प्रतीक है। श्री मोदी ने 'मातृदेवोभव' की भावना और हीराबेन के मूल्यों को अपने जीवन में ढाला है। तभी मोदी के लिये मां से बढ़कर कोई इंसानी रिश्ता नहीं रहा। वह सम्पूर्ण गुणों से युक्त थी, गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान थी। उनका आशीर्वाद वरदान बना। यही कारण है कि तमाम व्यस्तताओं एवं जिम्मेदारियों के बीच मोदी अपनी मां के पास जाते, उसके पास बैठते, उसकी सुनते, उसको देखते, उसकी बातों को मानते थे। उसका आशीर्वाद लेकर, उसके दर्शन करके एवं एक नई ऊर्जा लेकर निकलते थे।

साल 1923 में हीराबेन मोदी का जन्म हुआ था। उनकी उम्र 100 साल थी। हीराबेन मोदी का विवाह दामोदर दास मूलचंद मोदी के साथ हुआ था। हीराबेन मोदी के पांच बेटे और एक बेटी है। हीराबेन मोदी के बेटों के नाम सोमा मोदी, अमृत मोदी, नरेंद्र मोदी, प्रह्लाद मोदी व पंकज मोदी हैं। वहीं उनकी बेटी का नाम वासंती बेन हसमुखलाल मोदी है। दामोदर दास मूलचंद मोदी अब इस दुनिया में नहीं हैं।, दामोदर दास मोदी पहले वड़नगर में सड़क पर स्टॉल लगाया करते थे। वहीं इसके बाद कुछ समय तक उन्होंने रेलवे स्टेशन पर चाय भी बेचने का काम किया। मोदी ने अपने एक ब्लॉग में बताया था कि कि वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे। यह स्वाभाविक है कि जहां अभाव होता है, वहां तनाव भी होता है। लेकिन मां हीराबेन की विशेषता रही कि अभाव के बीच भी उन्होंने घर में कभी तनाव को हावी नहीं होने दिया।

हीराबेन का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणाओं का समवाय रहा है। वे समय की पाबंद थीं, उन्हें सुबह 4 बजे उठने की आदत थी, सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। वे काम करते हुए अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है "जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे" वो उन्हें बहुत पसंद था। एक लोरी भी है, "शिवाजी नु हालरडु", हीराबेन ये भी बहुत गुनगुनाती थीं। घर को नियोजित चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए हीराबेन दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रुई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ हीराबेन खुद ही करती थीं। उनको घर सजाने का, घर को सुंदर बनाने का भी बहुत शौक था। घर सुंदर दिखे, साफ दिखे, इसके लिए वो दिन भर लगी रहती थीं। वो घर के भीतर की जमीन को गोबर से लीपती थीं। उनका जीवन स्वावलम्बी था। सादगीमय था। संयमित था।

मां!' हीराबेन यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही नरेन्द्र मोदी का रोम-रोम पुलकित हो उठता, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता और मनोःमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता। उनके लिये 'मां' वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। मोदी के अनुसार 'मां' की ममता और उसके आंचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। जिन्होंने मुझे और मेरे परिवार को आदर्श संस्कार दिए। उनके दिए गए संस्कार ही मेरी दृष्टि में उनकी मूल थाती है। जो हर मां की मूल पहचान होती है। उनके संस्कार एवं स्मृति ही मोदी के भावी जीवन का आधार है।

हीराबेन का बचपन बहुत संघर्षों एवं अभावों में बीता। उनको अपनी मां का प्यार नसीब नहीं हुआ था। एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था। उसी महामारी ने हीराबेन की मां को छीन लिया था। हीराबेन तब कुछ ही दिनों की रही होंगी। उन्हें अपनी मां का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। हीराबेन को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव। फिर भी इन्हीं अभावों में उन्होंने अपने छः बच्चों को पाला-पोषा एवं संस्कारों में ढ़ाला।

हीराबेन विधाता के रचे इस परिवार को रचने वाली महाशक्ति थी। वे सपने बुनती थी और यह परिवार उन्हीं सपनों को जीता था और भोगता था। वे जीना सिखाती थी, वे पास रहे या न रहे उनका प्यार दुलार, उनके दिये संस्कार परिवार के हर सदस्य के साथ-साथ रहते थे। उन्होंने अपनी संतानों के भविष्य का निर्माण किया। इसीलिए वे प्रथम गुरु के रूप में भी थी। प्रथम गुरु के रूप में मां हीराबेन की इस परिवार के हर सदस्य के भविष्य निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। कभी उनकी लोरियों में, कभी झिड़कियों में, कभी प्यार से तो कभी दुलार से वे अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के बीज बोती रही। उनके सादगीमय जीवन-आदर्शों से समूचा राष्ट्र प्रेरित होता रहा है और युग-युगों तक होता रहेगा। हीराबेन ने संस्कार के साथ-साथ शक्ति भी दी है, उनकी भावनात्मक शक्ति मोदी के लिए ही नहीं, समूचे राष्ट्र के लिये सुरक्षा कवच का काम करती रहेगी।

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English summary
The demise of mother Heeraben Modi, who created a world hero like Prime Minister Narendra Modi, is an irreparable loss, a trauma not only for the son but for the entire nation. The stop of the centenary journey of Indian values and ideals is definitely a matter of mourning for every person of the country, but this is not the time to mourn, but to imbibe their ideals and life-values. It is said that God could not live with everyone so he created mother. Hiraben was such a wonderful mother, an angel. To say that she was human, but was no less than God. It was a temple, a place of worship and it was a place of pilgrimage. She was not only the life giver of Narendra Modi but also the culture maker, but also the ideal mother of this nation. With his demise, the era of affection, culture, sacrifice, dedication, simplicity and ideals has come to a standstill.
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