UPSC: भारतीय विदेश नीति, बढ़ती ताकत का प्रतिबिंब

UPSC: भारतीय विदेश नीति के सात दशक विभिन्न क्षेत्रों में देश के बढ़ती हुई ताकत का प्रतिबिंब हैं। इस दौर में कभी भारत ने आदर्शवादी और कभी घोर नैतिकतावादी विदेश नीति अपनाई तो कभी पूरी तरह यथार्थपरक रवैया अपनाया।

UPSC: भारतीय विदेश नीति के सात दशक विभिन्न क्षेत्रों में देश के बढ़ती हुई ताकत का प्रतिबिंब हैं। इस दौर में कभी भारत ने आदर्शवादी और कभी घोर नैतिकतावादी विदेश नीति अपनाई तो कभी पूरी तरह यथार्थपरक रवैया अपनाया। प्रमुख उद्देश्य भारतीय हितों को आगे बढ़ाने के साथही विश्व मानवता के कल्याण में योगदान रहा। विभिन्न चुनौतियों के बावजूद कूटनीति के कांटों भरे रास्तों के बीच भारत ने शांति और स्थिरता कायम करने के लिए वार्ता और संवाद पर जोर दिया। यूक्रेन- रूस युद्धमें भारत की इस भूमिका को पूरी दुनिया स्वीकार कर रही है। वास्तव में भारत शांति के पक्ष में आक्रामकता का इजहार कर रहा है। शांति युद्धऔर हथियारों की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए रक्षा की ढाल है। भारतीय विदेश नीति के इन्हीं आयामों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित है यह लेख

UPSC: भारतीय विदेश नीति, बढ़ती ताकत का प्रतिबिंब

यूक्रेन युद्ध के पहले तक विभिन्न गुटों के बीच अपनी भूमिका में संतुलन बनाए रखना भारत के लिए आसान था‚ लेकिन संघर्ष के लंबा खिंचने और इसका दायरा बढ़ने से भारत के लिए शत्रु देशों के साथ तालमेल बनाए रखना मुश्किल साबित हो रहा है॥ संबंधों के समीक्षक भारतीय विदेश नीति के वर्तमान दौर को 'स्वर्णिम काल' की संज्ञा दे रहे हैं। यह विडंबना है कि भारत की साख और कद में इजाफे का एक प्रमुख कारण यूक्रेन युद्ध है। परमाणु खतरे की आशंका के बीच इस संघर्ष से जुड़े विभिन्न देश भारत का समर्थन हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। पिछले आठ महीनों के दौरान एस. जयशंकर जितने व्यस्त रहे उतना देश का शायद ही कोई विदेश मंत्री रहा हो।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जयशंकर के बयानों को गंभीरतापूर्वक सुना गया और एक-एक शब्द को तौला गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका भी ऐसी ही रही। 'वर्तमान युग युद्ध का नहीं है।' यह कथन पूरी दुनिया में गूंज रहा है। वास्तव में मोदी और जयशंकर की जोड़ी की तुलना आजादी के तुरंत बाद बने जवाहरलाल नेहरू और कृष्ण मेनन से की जा सकती है। यह तुलना सटीक और तथ्यों पर आधारित है। पंडित नेहरू की दुनिया में एक राजनेता के रूप में साख थी‚ वहीं कृष्ण मेनन विचारक‚ रणनीतिकार के साथ ही विलक्षण वक्ता थे।

वर्तमान काल में भी प्रधानमंत्री मोदी अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक मान्य और स्थापित राजनेता हैं‚ वहीं जयशंकर कूटनीति का लंबा अनुभव रखने के साथ ही एक सिद्धांतकार भी हैं। जयशंकर ने अपने एक महkवपूर्ण व्याख्यान में भारत की विदेश नीति के 75 वर्ष को 6 काल खंडों में बांटा है। पहला कालखंड पंडित नेहरू की रूमानी मासूमियत का था‚ जिसमें 1946 से लेकर 1962 तक गुटिनरपेक्षता की विदेश नीति पर अमल किया गया। इस कालखंड के मुख्य सूत्रधार पंडित नेहरू और मेनन थे। अमेरिका के नेतृत्व वाले पूंजीवादी लोकतांत्रिक देशों और सोवियत संघ के नेतृत्व वाले साम्यवादी गठजोड़ की यह दो ध्रुवीय व्यवस्था थी।

इन दोनों ध्रुवों से समान दूरी बनाकर नवस्वाधीन देशों की अगुवाई करने की जिम्मेदारी भारत पर थी। मेनन ने अपने प्रभावपूर्ण वक्तृत्व शैली और अपने बौद्धिक तर्कों के आधार पर साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद की धज्जियां उड़ा दी थीं। पश्चिमी देश और वहां की मीडिया ने मेनन के विरुûद्ध लगातार जहर उगला। इस कालखंड की एक प्रमुख घटना 1961-62 में गोवा की मुक्ति के लिए की गई सैनिक कार्रवाई थी।

अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकी की परवाह ना करते हुए नेहरू सरकार ने गोवा‚ दमन दीव में उपनिवेशवादी पुर्तगाली सत्ता का सामना किया था। नेहरू और मेनन की विदेश नीति का यह उल्लेखनीय दौर 1962 में चीन के हाथों भारत की सैन्य पराजय के साथ खत्म हुआ। हिमालय में भारतीय सेना की पराजय के कारण मेनन के राजनीतिक जीवन का अंत हो गया‚ वहीं पंडित नेहरू की अंतरराष्ट्रीय साख को भारी धक्का लगा। कुछ ही समय बाद पंडित नेहरू का निधन हो गया।

विदेश नीति का दूसरा दौर 'यथार्थवाद और बहाली' का था‚ जो 1962 से 1971 तक चला। इस दौर में भारत ने गुटिनरपेक्षता की नीति की समीक्षा की और किसी एक गुट के साथ जुड़ने पर विचार किया। विदेश नीति का तीसरा दौर क्षेत्रीय स्तर पर सक्रियता का था‚ जो 1971 से 1991 तक चला। इस दौर में भारत तत्कालीन सोवियत संघ का सहयोगी बना और उसने सैन्य शक्ति की बदौलत बांग्लादेश का निर्माण संभव बनाया। इस कालखंड के अंतिम दौर में श्रीलंका में सैन्य हस्तक्षेप की गफलत भी हुई। सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत को अभूतपूर्व आÌथक संकट का सामना करना पड़ा।

उसके बाद देश में आÌथक सुधारों का दौर शुरू हुआ। वर्ष 1991 से 1998 तक का यह दौर 'रणनीतिक स्वायत्तता के रक्षण' का दौर था। इसी कालखंड में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने अंतरराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार कर देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाया। परमाणु शक्ति संपन्न और तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में भारत ने अंतरराष्ट्रीय जगत में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में पहचान बनाई। इसी दौर में जहां एक ओर अमेरिका के साथ परमाणु समझौता हुआ वहीं रूस के साथ परंपरागत मैत्रीपूर्ण संबंधों को मजबूत बनाया गया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जयशंकर की विदेश नीति का वर्तमान दौर गुटनिरपेक्षता के विपरीत गुटसंबद्धता का है। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो ऐसे गुटों में शामिल है‚ जिसके सदस्य देश आपस में प्रतिस्पर्धी भी नहीं बल्कि घोर विरोधी हैं। यूक्रेन युद्ध के बाद तो दुनिया में दुश्मनी और आर-पार की लड़ाई का माहौल बन गया है। इन परिस्थितियों में भारत जहां अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के संगठनों में शामिल है वहीं रूस और चीन के प्रभाव वाले गुटों का भी प्रमुख सदस्य है।

इंडो-पेसिफिक और खाड़ी क्षेत्र में अमेरिका‚ ऑस्ट्रेलिया‚ जापान‚ संयुक्त अरब अमीरात‚ इस्राइल जैसे देशों का सहयोगी हैं वहीं ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य के रूप में वह रूस और चीन का सहयोगी देश है। यूक्रेन युद्ध के पहले तक विभिन्न गुटों के बीच अपनी भूमिका में संतुलन बनाए रखना भारत के लिए आसान था‚ लेकिन संघर्ष के लंबा खिंचने और इसका दायरा बढ़ने से भारत के लिए शत्रु देशों के साथ तालमेल बनाए रखना मुश्किल साबित हो रहा है।

यह भी हो सकता है कि आगामी दिनों में भारत को एक गुट के साथ आने पर बाध्य किया जाए। यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस की निंदा और विरोध करने से लगातार इनकार किया। हालांकि कुछ प्रक्रियागत मुद्दों पर उसने पश्चिमी देशों का साथ दिया। भारतीय विदेश नीति का प्रमुख लIय इस समय बहुतध्रुवीय व्यवस्था को बनाए रखना और मजबूत करना है।

इस बहुध्रुवीय व्यवस्था में भारत एक स्वाभाविक ध्रुव है। विदेश मंत्री जयशंकर एशिया महादीप में भी चीन के प्रभुत्व वाले एकल ध्रुवीय व्यवस्था को खारिज करते हैं। वास्तव में एशिया में भारत और चीन दोनों स्थापित ध्रुव हैं। उनके बीच सहयोग और तालमेल से एशिया की सदी का सपना साकार हो सकता है। उनके बीच संघर्ष से उभर रही बहुध्रुवीय व्यवस्था को धक्का पहुंच सकता है।

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English summary
UPSC: Seven decades of Indian foreign policy is a reflection of the country's growing strength in various fields. During this period, sometimes India adopted an idealistic and sometimes very moralistic foreign policy and sometimes adopted a completely realistic attitude. The main objective was to advance Indian interests as well as contribute to the welfare of world humanity. In spite of various challenges, amidst thorny avenues of diplomacy, India emphasized on dialogue and dialogue to establish peace and stability. The whole world is accepting this role of India in the Ukraine-Russia war. In fact, India is expressing aggression in favor of peace. Peace is the shield of defense to counter the aggression of war and weapons. This article focuses on various aspects related to these dimensions of Indian foreign policy.
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