Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी क्या है, क्यों होती है मां सरस्वती की पूजा

Basant Panchami 2024: शीत ऋतु की कंपन पैदा करने वाली ठंड से त्रस्त जगत को, अपने मंद सुगंधित, शीतल बयार और अनुपम सौंदर्य मोहते वसंत का आगमन पर्व की तरह होता है। वसंत के आते ही संपूर्ण जीवन में हर्ष और ऊर्जा का संचार होता है। प्रकृति का मोहक सान्निध्य पाने और अपने मन- जीवन में नवचेतना का सृजन करने का यह सुंदर अवसर है।

वसंत का सौंदर्य ऐसा मनमोहक होता है कि बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। वसंत का आगमन प्रकृति का उत्सव है। शीत ऋतु के आघात से ठिठुरे बाग-बगीचे, वसंत ऋतु में फूलों से लद जाते हैं, वृक्षों की लताएं खिलकर झूम उठती हैं। जिस तरह यौवन हमारे जीवन का वसंत है, उसी तरह वसंत इस प्रकृति की यौवन ऋतु है।

बसंत पंचमी क्या है, क्यों होती है मां सरस्वती की पूजा

पुराणों-साहित्य में वर्णित

वसंत हमारे मन में सुंदर रचनात्मक भावनाओं का भी जागरण करता है। तभी तो वसंत के मोहक रूप पर हर युग में कवियों और रचनाकारों ने इस पर खूब लिखा है । अनगिनत रचनाएं हुई हैं। महर्षि वाल्मीकि ने 'रामायण' में वसंत का अति सुंदर और मनोहारी चित्रण किया है। भगवान कृष्ण ने गीता में 'ऋतूनां कुसुमाकरः' कहकर ऋतुराज वसंत को अपनी विभूति माना है। कविवर जयदेव ने तो वसंत की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। प्रसिद्ध छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी काव्य पंक्तियों के माध्यम से वसंत का मनभावन वर्णन करते हुए लिखा है, 'सखि वसंत आया / भरा हर्ष वन के मन / नवोत्कर्ष छाया।'

प्रकृति ओढ़ती पीली चादर

ऋतुओं का राजा वसंत बड़ी सौम्यता से मानव-मन पर दस्तक देता है। जब केवल उपवन ही नहीं हर ओर सृष्टि केसर, कदंब, कचनार के फूलों से सज उठती है और पूरी प्रकृति अमलतास के मनोहर पीले फूलों से भर उठती है। खेत-खलिहानों में सरसों के पुष्प पीली चादर से धरती को ढंक देते हैं। देवदार के वृक्षों की छाया और सघन हो जाती है। अंगूरों की लताएं रस से भर उठती है । चारों तरफ प्रकृति अपने यौवन पर होती है । एक अद्भुत, सुवासित गंध हर तरफ बिखर जाती है।

तन-मन में होता स्फूर्ति का संचार

वसंत ऋतु आते ही प्रकृति और अधिक सुहावनी लगने लगती है। वासंती सौंदर्य बरबस ही हमें अपनी ओर आकृष्ट करता है। ऐसी सुहानी ऋतु में हम अगर अपने व्यस्त जीवन में से कुछ पल प्रकृति के सान्निध्य में गुजारें तो तन-मन में नई ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार हो जाता है। वास्तव में प्रकृति में ऐसा चमत्कारी प्रभाव होता है, जो हमारी मानसिक वेदनाओं को हर लेता है। प्रकृति का सान्निध्य यदि निरंतर मिलता रहे तो हमारे जीवन पर उसका बहुत ही गहरा - सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ पल प्रकृति के निकट बिताने से तन में स्फूर्ति, मन में उल्लास-प्रसन्नता और हृदय में चेतना का संचार होता है। समग्र सृष्टि सुमधुर लगने लगती है। सृष्टि की सुंदरता और मानसिक प्रसन्नता का जहां सुमेल होता है, वहां निराशा, नीरसता, निष्क्रियता जैसी भावनाओं के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहता है।

खुले मन से करें स्वागत

हमारी संस्कृति में वसंत ऋतु में उत्सव का अत्यंत गौरवमयी इतिहास रहा है। लेकिन अब वसंत कुछ उदास-सा लगता है। वह आता है, ठिठकता है और चुपचाप चला जाता है। इस मशीनी युग में उसके आने की पदचाप तक हम नहीं सुन पाते हैं। आइए इस बार प्रकृति के वसंत उत्सव में हम जरूर सम्मिलित हों। उसकी पीत आभा को अपने अंतस में उतार लें। वसंत का स्वागत खुले हृदय से करें। यकीन मानिए, वो हमें नवऊर्जा-नवचेतना से सराबोर कर देगा।

बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ मास मां सरस्वती की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन वाणी की अधिष्ठात्री, विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी मां सरस्वती का आविर्भाव हुआ था । इसीलिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है। देश के पूर्वी हिस्से खासकर बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम और पूर्वोत्तर में वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा का पर्व बहुत भव्य तरीके से मनाने की परंपरा है। चूंकि इसी दिन वसंत ऋतु शुरू होता है, इसलिए इसे वसंत पंचमी भी कहा जाता है। इसी दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था । यही कारण है कि वसंत पंचमी को रति-मदन की भी पूजा का विधान है।

इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्मा जी ने असंख्य जीवों की रचना करने के बाद जब सृष्टि को देखा तो उन्हें कुछ अधूरा-सा महसूस हुआ। वातावरण बेहद शांत था, उसमें किसी तरह की कोई ध्वनि नहीं थी। ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से चर्चा की फिर अपने कमंडल से जल की कुछ बूंदों को लेकर धरती पर छिड़क दिया, जिससे एक देवी प्रकट हुईं, जिनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में तथास्तु मुद्रा तथा अन्य दो हाथों में क्रमशः पुस्तक और माला थी। ब्रह्मा जी के अनुरोध पर जब देवी सरस्वती जी ने वीणा का मधुरनाद किया, तो सृष्टि के समस्त जीव-जंतुओं तथा प्राणियों को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा कोलाहल करने लगी, हवा में सुगंध भर गई। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती के लिए कहा गया है-ये परम चेतना हैं।

बसंत पंचमी पर शुभकामना संदेश बसंत पंचमी पर 10 शुभकामनाएं

1. ज्ञान की देवी मां सरस्वती का आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे।
2. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं! ज्ञान और कला का यह त्योहार आपके जीवन में उल्लास और खुशियां लाए।
3. वसंत ऋतु का शुभारंभ हो, मन में उमंगों का हो हिलोर, सरस्वती मां की कृपा बरसे, मिले ज्ञान का अमोल अनमोल खजाना।
4. मां सरस्वती आपकी बुद्धि और ज्ञान को प्रदीप्त करें।
5. पीले रंग की बहार, सरस्वती मां का त्यौहार, ज्ञान और कला का संगम, बसंत पंचमी का शुभ त्यौहार।
6. इस बसंत पंचमी पर, मां सरस्वती आपको ज्ञान, कला और सफलता प्रदान करें।
7. आओ मिलकर मनाएं बसंत पंचमी का त्यौहार, ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा करें, और जीवन में खुशियां लाएं।
8. मां सरस्वती की कृपा से आप जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें।
9. बसंत पंचमी का यह त्यौहार आपके जीवन में नई उमंग और उत्साह लाए।
10. मां सरस्वती की वीणा से निकलती मधुर ध्वनि आपके जीवन को मधुर बनाए।
11. इस बसंत पंचमी पर, आप अपनी कला और प्रतिभा को निखारें और जीवन में सफलता प्राप्त करें।
12. मां सरस्वती की कृपा से आप जीवन में हर बाधा को पार करें और अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
13. बसंत पंचमी का यह त्यौहार आपके जीवन में ज्ञान, कला और सकारात्मकता का प्रकाश लाए।

शुभ बसंत पंचमी!

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English summary
Basant Panchami 2023: The arrival of spring is like a festival to the world stricken by the cold that creates the vibrations of the winter season, beckoning with its soft scent, cool breeze and unique beauty. With the arrival of spring, there is communication of joy and energy in the whole life. This is a beautiful opportunity to get the enchanting company of nature and create new consciousness in your mind and life. The beauty of spring is so mesmerizing that it attracts itself towards itself. The arrival of spring is a celebration of nature. The gardens and gardens, which are cold due to the trauma of the winter season, are covered with flowers in the spring, the vines of the trees bloom and dance. Just as youth is the spring of our life, similarly spring is the youthful season of this nature.
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