Teacher's Day 2022 : डॉ राधाकृष्णन के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म 5 सितंबर 1888 में हुआ था। 1954 के बाद से भारत इस दिन को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के तौर पर हर वर्ष मनाता है।
Varsha Kushwaha
डॉ राधाकृष्णन को शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भारत रत्न पुरस्कार के साथ उन्हें उनके अध्यापने के लिए 1931 में ब्रिटिश सम्राट किंग जार्ज पंचम द्वारा नाइटहुड की उपाधि दी गई थी। इसके करीब तीन दशक के बाद ब्रिटेन के शाही लोगों द्वारा उन्हें 'ऑर्डर ऑफ मेरिट से भी सम्मानित किया गया।
1). नाइटहुड
डॉ राधाकृष्णन को 1975 में प्रसिद्ध 'टेम्पलटन फाउंडेशन' द्वारा 'टेम्पलटन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार के द्वारा अर्जित राशि को उन्होंने 'ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय' को दान कर दिया।
2). टेम्पलटन पुरस्कार
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार हुआ था जिसकी वजह से उनके पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई की बजाय मंदिर के पुजारी बने। लेकिन फिर भी उन्होंने थिरुथानी के एक स्कूल में दाखिला लिया और अंत में सबसे अधिक पढ़े-लिखे भारतीयों बने।
3. राधाकृष्णन के पिता उनकी शिक्षा के विरोधी थे
4. उनके छात्रों द्वारा एक प्यारी श्रद्धांजलि
डॉ राधाकृष्णन मैसूर के विश्वविद्यालय में शिक्षक थे। शिक्षक के रूप कार्यकाल प्रदान करने के बाद वह अपने अगले कार्यकाल के लिए कलकत्ता जा रहे थे तो उनको विदाई देने के लिए उनके छात्रों ने उन्होंने फूलों की गाड़ी में बैठाकर रेलवे स्टेशन पहूंचाया।
इंग्लैंड में राधाकृष्णन के भाषण को 20वीं शताब्दी के प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान एच.एन. स्पाल्डिंग ने सुना और वह उनके बड़े प्रशंसक बने। स्पाल्डिंग को 'पूर्वी धर्म और नैतिकता' के सम्मान में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एक चेयर शुरू की। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के इस प्रभाग द्वारा उन लोगों को अनुदान देता है जो धार्मिक अध्ययन पर शोध करना चाहते हैं।
5. एच.एन. स्पाल्डिंग
6. दर्शनशास्त्र
डॉ. राधाकृष्णन भारत के सबसे महान दर्शनशास्त्री थे। उन्होंने दर्शनशास्त्र पर कई किताबें लिखी। ब्रिटिश दार्शनिक और इतिहासकार बर्ट्रेंड रसेल ने एक बार कहा था कि राधाकृष्णन को भारत के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया जाना 'दर्शन के लिए सबसे बड़ा सम्मान' है।
7. सोवियत संघ और यूनेस्को के साथ उनका प्रयास
1947 से 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत के तौर पर कार्यरत थें। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसके साथ कम ही लोग हैं जो जानते हैं कि उन्हें यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था।
8. जातिवाद के खिलाफ उचित जवाब
लंदन में एक डिनर के दौरान एक ब्रिटिश नागरिक ने भारतीयों पर टिप्पणी कि की सभी भारतीय काली चमड़ी वाले हैं। इसके जवाब में राधाकृष्णन ने कहा "भगवान ने एक बार रोटी को ज्यादा पकाया तो उसे 'नीग्रो' कहा गया। जब रोटी को कम पकाया तो उस 'यूरोपीय' कहा गया लेकिन जब भगवान ने रोटी को आदर्श सीमा तक पकाया और इसे 'भारतीय' कहा गया।
गांधी द्वारा शुरू किए गए 'भारत छोड़ो आंदोलन' का जवाब देने के लिए ब्रिटिश गवर्नर सर मौरिस हैलेट विश्वविद्यालय को एक युद्ध अस्पताल में बदलना चाहते थे। डॉ. राधाकृष्णन ने हैलेट के इस राजनीति विचार का विरोध किया और वित्तीय सहायता को बंद होने पर कामकाज को बनाए रखने के लिए उन्होंने देश के परोपकारी और विचारकों से धन जुटाने का प्रयत्न किया।
9. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
जब संसद भवन का माहौल राजनीतिक नेताओं के बहस करने की वजह से अराजक होत था तो डॉ राधाकृष्णन गर्म माहौल शांत करने और लोगों के भीतर अनुशासन पैदा करने के लिए भगवद गीता या बाइबिल का पाठ करते थे। इसे देख कर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि 'डॉ. राधाकृष्णन ने संसद के सत्र को पारिवारिक समारोहों जैसा बना दिया।