Kargil war 2022: परम वीर चक्र योगेंद्र सिंह यादव से जुड़े 10 रोचक तथ्य
सबसे कम उम्र में कारिगल युद्ध में अपने योगदान के लिए परम वीर चक्र से सम्मानित होने वाले कारिगल नायक की कहानी
Varsha Kushwaha
सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में औरंगाबाद अहिर, बुलंदशहर जिले, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके पिता करन सिंह यादव ने भी भारतीय सेना में सेवा दी थी।
योगेंद्र सिंह यादव ने 16 साल की उम्र में आर्मी ज्वाइन की। यादव, घटक फोर्स के कमांडो प्लाटून का हिस्सा थे।
यादव भी कारगिल युद्ध के नायकों में से एक हैं। कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें टाइगर हिल के तीन बंकरों पर कब्जा करने के अभियान पर भेजा गया। 4 जुलाई 1999 में योगेंद्र सिंह यादव को इस अभियान पर भेजा गया था।
जिन बंकरों पर यादव को भेजा गया था वह बंकर 1000 फीट की ऊंचाई पर बर्फ से ढंके हुए थे। उन बंकरों तक जाने के लिए रस्सियों को बांधा गया ताकि वह दुश्मनों के बंकर तक पहुंच सके।
अचानक दुश्मनों के बंकर से मशीन गन और रॉकेट की आग से प्लाटून कमांडर और अन्य दो सैनिक मारे गए। उसी दौरान कमर और कंधे पर गोली लगने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और वह बची हुई 60 फीट की दूरी तय कर चोटी पर पहुंचे।
गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी यादव ने पहले बंकर में ग्रेनेड फेक कर उसे तबहा कर दिया और चार पाकिस्तानीयों को मार गिराया।
बंकर के नष्ट होने की वजह से गोलाबारी बेअसर हो गई और जिसकी वजह से उनकी पलटन के बाकि साथियों को ऊपर आने में आसानी हुई।
इसके बाद यादव और उनकी पलटन ने मिलकर एक-एक करके सभी बंकरों को नष्ट कर दिया और प्लाटून ने टाइगर हिल पर भारत का कब्जा वापिस हासिल कर लिया।
इस अभियान के दौरान सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव 12 गोलियां लगी थी।
कारगिल युद्ध में उनके इस योगदान को देखते हुए भारतीय सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परम वीर चक्र से नवाजा गया।